covid-test_antigen_kit
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मुजफ्फरपुर जिले में एंटीजन किट से कोविड जांच का लाइसेंस मात्र एक निजी लैब को दिया गया है, लेकिन बड़े पैमाने पर सरकारी किट की गड़बड़ी कर पूरे जिले में एक हजार रुपये में इसकी कालाबाजारी हो रही है। लाइसेंसी लैब जिला परिषद मार्केट में है, लेकिन इसकी जांच धड़ल्ले से सभी निजी अस्पताल से लेकर झोला छाप डॉक्टर तक कर रहे हैं।

केस-1 
पताही में एक ही परिवार के दो लोगों को कोविड के लक्षण दिखायी दिये। वे दोनों एंटीजन जांच के लिए पहले सदर अस्पताल गए तो वहां काफी भीड़ दिखी। इसके बाद उन्होंने स्टेशन के पूछताछ काउंटर पर बने काउंटर पर जांच करायी, लेकिन उन्हें रिपोर्ट नहीं दी गई। लक्षण की गंभीरता बढ़ने के बाद उन्होंने गांव के निजी प्रैक्टिशनर को फोन लगाया। उसने कहा कि वह रिपोर्ट तो नहीं दे सकेगा, लेकिन किट की व्यवस्था है, चाहे तो वह उसे जांच कर परिणाम बता सकता है। उस प्रैक्टिशनर ने दो मरीजों के 2200 रुपये लिए व एंटीजन किट से जांच कर बता दिया कि दोनों निगेटिव हैं। हालांकि, लक्षण के आधार पर उनका इलाज आज भी चल रहा है। हाल यह है कि शक होने के बाद गांव के काफी लोग धड़ल्ले से 1100 रुपये देकर जांच करा रहे हैं।
 
केस-2  
रेवा रोड में भामा साह द्वार के अंदर के प्राइवेट टीचर में कोविड के लक्षण दिखायी दिये। उन्होंने एक नामी लैब को फोन लगाया और कहा कि एंटीजन जांच करानी है। लैब के कर्मचारी ने कहा कि एंटीजन से जांच की अनुमति लैब को नहीं है। लेकिन, व्यवस्था हो जाएगी। शर्त है कि वह लिखित रिपोर्ट नहीं देगा, लेकिन किट से जांच कर परिणाम बता देगा। इसके बाद वह उस लैब में पहुंचे, जहां साढ़े पांच सौ में जांच की जा रही थी। वहां जांच कराने वालों की लंबी कतार देख वे लैट गए और फिर नामी लैब को फोन लगाया। कर्मचारी से 1100 में सौदा पक्का हुआ। उसने जांच कर बता दिया कि उनका रिपोर्ट पॉजिटिव है। जब उन्होंने पूछा कि जिला परिषद मार्केट में तो यह जांच साढ़े पांच सौ में होता है तो कर्मचारी ने साफ कहा कि किट की प्राइवेट सप्लाई नहीं है। सरकारी कर्मचारी से वे आठ सौ से एक हजार में खरीदते हैं और उसके हिसाब से जांच कराने वालों से पैसा लेते हैं।

सकरा से खुले मामले का कई जिलों में है जड़
सकरा में चार हजार किट बरामदगी के बाद यह राज अब खुलने लगा है कि बड़े पैमाने पर निजी प्रैक्टिशनर के हाथ जांच किट कैसे लग रहे हैं। पीएचसी से लेकर मुख्यालय तक इनका नेटवर्क बना हुआ है। गलत लोगों के नाम पते भरकर रिपोर्ट बना दी जाती है और किट को बचा लिया जाता है। यही किट आठ सौ से लेकर एक हजार तक में निजी लैब व झोला छाप डॉक्टरों को दे दिया जाता है। ये गांव में उससे अधिक राशि वसूल कर जांच तो कर देते हैं, लेकिन लिखित रिपोर्ट नहीं देते। सूत्रों के अनुसार यह खेल राज्य के तमाम जिलों में चल रहा है। आम तौर पर एक सेंटर पर सौ संदिग्धों की जांच हो पाती है, लेकिन कर्मचारी डेढ़ से लेकर दो सौ तक की फर्जी रिपोर्ट तैयार कर किट ब्लैक करने के लिए बचा लेते हैं। ये किट गांव के प्रैक्टिशनर से लेकर बड़े निजी अस्पतालों तक को सप्लाई की जा रही है, जहां लाइसेंस न होने के बावजूद मरीजों को एंटीजन जांच कर इलाज किया जा रहा है। इस मामले में सिविल सर्जन डॉ. एसके चौधरी ने कहा कि अब मामले की जांच पुलिस कर रही है। दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।