बिहार विधानसभा मानसून सत्र के पांचवे दिन नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and auditor general of india) ने अपनी एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। रिपोर्ट वर्ष 2018 से 2020 की थी, जिसमे बिहार के कई सारे घोटाले का मामले दर्ज़ है। रिपोर्ट में दी गई जानकारी के अनुसार राज्य सरकार को 3658.11 करोड़ का बड़ा घाटा हुआ है। ऐसी गंभीर लापरवाहियाँ राज्ये सरकार द्वारा देखने को मिलेगी ऐसा कभी किसी ने सोचा नहीं था।
रिपोर्ट के अनुसार मनरेगा को लेकर कई तत्व सामने आई है। जिसमे सबसे पहला 2014 से 2019 के बिच मनरेगा के अंतर्गत उपलब्ध कराये गए रोज़गार की जनगारी शामिल है। रिपोर्ट की माने तो इन वर्षो में 26 से 36 फीसदी लोगों द्वारा रोज़गार की मांग की गयी थी लेकिन उसमे से केवल 3 प्रतिशत ही रोज़गार की उपलब्धता करवाई गई है। पड़ताल के बाद महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के क्रियान्वयन में भी अनियमितता देखी गयी और साथ ही यह बात सामने आई की मनरेगा के लिये गए कार्य योजना के तहत सिर्फ़ 14 प्रतिशत कार्य ही पूरे हो पाए है और तो और 5 साल से बन रहे भारत और नेपाल सिमा के बिच की सड़क निर्माण को भी देरी हुई है और करीबन 552 किलोमीटर के योजना में से मात्र 25 किलोमीटर की निर्माण हो पाया है।
पिछले 5 सालो में केंद्र सरकार द्वारा दिए गए पूंजी में से कुल 98 प्रतिशत रक़म का इस्तेमाल किया जा चुका है लेकिन कार्य प्रगति कितना हुआ है उसका लिखा जोखा डेटा सबके सामने है। अब तक 2018 से 2020 के बिच 1648 मामलो में से 629 मामले का अवनिर्धारण राजस्व का पता चला है और बिहार सरकार ने इस बात की पुष्टि पर अपनी स्वीकृति भी जताई है कि इन 2 सालो में कुल 1336.65 करोड़ राजस्व का नुक्सान भी हुआ है।