FREEDOM FIGHTER FROM BIHAR
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वैसे तो रमेश चंद्र झा पूर्ण रूप से बिहार के चंपारण जिले के फुलवरिया गांव में पैदाइशी थे। उनका जन्म 8 मई 1925 में हुई थी। रमेश झा एक भारतीय कवि, उपन्यासकार और स्वतंत्रता सेनानी थे। हालाँकि उन्हें लेखिका में ज़्यादा रूचि रखा करते थे मगर देश की आज़ादी में भी उन्होंने अपनी योगदान दी थी।

एक वरिष्ठ गांधीवादी – लक्ष्मी नारायण झा के बेटे थे रमेश झा। आपको बता दें कि उनके पिता को बिहार के पहले मुख्यमंत्री बनने की पेशकश दी गई थी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था। ऐसा इसलिए क्यूंकि उन्होंने खुद को हमेशा एक स्वतंत्रता सेनानी और फिर एक राजनेता के रूप में देखा था। रमेश झा ने भी हमेशा अपने पिता संग देश की आज़ादी में आगे बढ़ कर काम किया था। केवल 14 साल के ही उम्र में उन्हें अंग्रेज़ो ने डकैती के गलत आरोप में बंदी बना लिया था जिसके बाद से ही वह बगावत पर उतर आए थे। भारत छोड़ो आंदोलन के वक़्त उन्हें कई बार जेल का मुँह भी देखना पड़ा था। जिसके कारण वह हमेशा अंग्रेज़ो के ख़िलाफ विद्रोह के रूप में व देशभक्ति से भरी कविताएं लिखा करते थे।

उनकी कविताएँ, ग़ज़लें और कहानियाँ देशभक्ति और मानवीय मूल्यों को जगाती हैं। स्वच्छंदतावाद और जीवन का संघर्ष भी उनके लेखन के महत्वपूर्ण पहलू हैं। उनकी कविता लोगों के जीवन संघर्ष, उनके सपनों और आशाओं की चिंताओं को व्यक्त करती है। 1960 के दशक में अपने और सपने: ए लिटरेरी जर्नी ऑफ चंपारण के रूप में प्रकाशित उनके शोध ने बिहार में चंपारण की समृद्ध साहित्यिक विरासत का पता लगाया और दिनेश भ्रमर और पांडे आशुतोष जैसे आने वाले युवा कवियों को नोट किया।