एक दौर था जब हिंदी फिल्मों में सबसे ताकतवर खलनायक दिखाने की होड़ रहती थी। ये खलनायक जितना ताकतवर होता था, उतना ही हीरो को उसे मारने के लिए संघर्ष करना पड़ता था। कई बार तो खलनायक अपने अभिनय से हीरो पर भी भारी पड़ जाता है। ऐसी तमाम फिल्में हैं, जो सिर्फ खलनायक की वजह से हिट हुईं। और जब जब बात हिंदी फिल्मों में खलनायक की होती है तब सबसे ऊपर अमरीश पुरी का नाम आता है। रौबदार शख्सियत, आंखों में गजब का तेज और दमदार आवाज जब पर्दे पर सुनाई देती थी तब दर्शक समझ जाता था कि बॉलीवुड का सबसे बड़ा खलनायक आ चुका है.बॉलीवुड के मशहूर विलेन में शुमार अमरीश पुरी ने आज ही के दिन इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गये थे.
अमरीश पुरी को उनके अभिनय के लिए जाना जाता है। केवल विलेन ही नहीं बल्कि वो हर किरदार में बखूबी घुल जाया करते थे। अमरीश पुरी ने बॉलीवुड में सिर्फ नेगेटिव किरदार नहीं किए। बल्कि उन्होंने कई फिल्मों में पॉजिटिव किरदार भी किए हैं। ‘मोगैम्बो खुश हुआ’,’जा सिमरन जा जी ले अपनी जिंदगी, ऐसे बहुत से किरदार थे जिनके वजह अमरीश पूरी जी हमारे बीच में नहीं होकर भी अपनी किरदार के वजह से हमारे दिल में बसते हैं. अमरीश पूरी साहेब का ये डायलॉग- ‘अपनी किसी प्यारी चीज पर जब चोट का एहसास लगता है तो दिल में दर्द जाग उठता है, फिल्म फूल और कांटें. अमरीश पुरी ने लगभग 450 फिल्मों में काम किया था. अमरीश पुरी इंडस्ट्री के इतने काबिल एक्टर रहे हैं कि उनके बारे में रिजेक्शन जैसी बातें सुनना सच नहीं लगता. मगर ऐसा हुआ था. अमरीश पुरी को भी रिजेक्शन सामना करना पड़ा था.
आमतौर पर फिल्मों में विलन के रोल्स करने वाले अमरीश पुरी ने साल 1954 में इंडस्ट्री में पांव जमाना चाहा था. मगर वे किसी विलन का रोल करने नहीं बल्कि लीड हीरो बनने के लिए आए थे. अमरीश पुरी को इस ऑडिशन में रिजेक्शन का सामना करना पड़ा था. प्रोड्यूसर ने उनको ये कहते हुए रिजेक्ट कर दिया कि उनका चेहरा बड़ा पथरीला सा है. अमरीश पुरी की उम्र उस समय मात्र 22 साल की थी. इसके बाद अमरीश पुरी ने थिएटर का रुख किया. उन्होंने साल 1961 में थिएटर में एंट्री मारी और इसका श्रेय जाता है एनएसडी के निदेशक इब्राहिम अल्काजी को. अल्काजी साहब ही उन्हें थिएटर लेकर आए. इससे पहले वे मुंबई के कर्मचारी राज्य बीमा निगम में नौकरी करते थे.