Kartik-Purnima

शुक्रवार, 19 नवंबर को देश भर में यह दिन कार्तिक पूर्णिमा के रूप में मनाया जायेगा। यह कार्तिक मास का आखिरी दिन भी होगा। इसके साथ ही इसी दिन श्रीहरि ने अपने प्रथम अवतार यानी मत्स्य के रूप में इसी दिन शाम को अवतार लिया था। भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की बड़ी रोचक कहानी है। लेकिन इससे पहले आपको बता दें कि कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन गुरुनानक देव जी की जयंती भी मनाई जाती है।

श्रीहरि के मत्स्य अवतार धारण करने की कहानी

प्राचीन समय में जब जल प्रलय आया था। तब मत्स्य अवतार के रूप में अवतरित हो कर भगवान श्रीहरि ने पूरे संसार की रक्षा की थी। प्राचीन समय में एक उदार हृदय वाले राजा सत्यव्रत स्वामी थे। वह एक दिन नदी में स्नान कर रहे थे। स्नान के बाद तर्पण के लिए उन्होंने जब हाथ में जल लिया, तो जल के साथ एक छोटी मछली भी आ गई। उदार हृदय वाले राजा ने मछली को छोड़ दिया। जिसके बाद मछली ने राजा से मदद मांगी और कहा कि – जल के बड़े-बड़े जीव छोटे-छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं। कृपया आप मेरे प्राणों की रक्षा करें।

जिसके बाद राजा ने उस मछली की जान बचाने के लिए उसे अपने कमंडल में दाल लिया लेकिन मछली रातो रात बढ़ने लगी जिससे देख कर राजा ने उसे मटके में दाल दिया। लेकिन फिर भी मछली का आकार बढ़ता ही जा रहा था। राजा हर बार उस मछली को बड़े जगह में डालते और वो मछली हर बार बड़ी होती जा रही थी। और जब राजा ने आखिर में समुद्र में उस मछली को डाला तो उससे पूछा की आप कौन हो ? जिसके बाद मत्स्य अवतार में अवतरित हो कर श्रीहरि ने राजा से कहा – हे राजन ! हयग्रीव नामक राक्षस ने सारे वेदों को चुरा कर रख लिया है। जिसके बाद पूरी सृष्टि में अज्ञान और अधर्म फैला हुआ है। मैंने यह अवतार हयग्रीव को मारने के लिए ही धारण किया है।

मत्स्य अवतार में राजा सहित सप्त ऋषियों को नाव से पार लगाते श्रीहरि

आज से 7वें दिन पृथ्वी पर प्रलय में आ जाएगी। तब आपके पास एक नाव पहुंचेगी। आप सभी अनाजों और औषधियों के बीजों को लेकर सप्त ऋषियों संग नाव पर बैठ जाना। मैं उसी समय आपको दिखाई पड़ूंगा। जिसके बाद मैं आपको ज्ञान प्रदान करूंगा। उस दिन पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी। और जैसा श्रीहरि ने कहा था वैसा ही हुआ। तभी एक नाव आई, जिसमें सत्यव्रत सप्त ऋषियों के साथ बैठ गए, जिसमें उन्होंने अनाजों और औषधियों के बीज को रखा था। तब मत्स्यरूपी भगवान ने सत्यव्रत और सप्त ऋषि गण की प्रार्थना पर आत्मज्ञान प्रदान किया। प्रलय का प्रकोप शांत होने पर मत्स्य अवतार में श्रीहरि ने हयग्रीव को मारकर उससे वेद छीन लिया और जिसके पश्चात वेद फिर से ब्रह्माजी को दे दिए गए।

हिन्दू मान्यताओं में कार्तिक पूर्णिमा से जुड़ी बातें

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस दिन शिव जी ने त्रिपुरासुर नाम के दैत्य का वध किया था, इस वजह से इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को देवताओं की दीपावली के रूप में भी मनाया जाता है। क्योंकि कार्तिक मास की अंतिम दिन यानी पूर्णिमा पर इस माह के स्नान समाप्त हो जाएंगे। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र गंगा नदी में स्नान, दीपदान, पूजा, आरती, हवन और दान-पुण्य करने से लोगों को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।