lalu yadav

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, आज इस नाम को किसी पहचान की जरूरत नहीं है। दुनिया भर में लालू प्रसाद यादव के प्रशंसक तो है ही साथ ही उनके राजनीतिक दांवपेच के दीवाने भी मौजूद हैं। आज भले ही लालू सत्ता में नहीं है। लेकिन आज भी वो सत्ता को अपने पलड़े में झुकाने का दम रखते हैं। आज लालू प्रसाद यादव यानि राजद सुप्रीमो अपना 75वां जन्मदिन मना रहे हैं। लालू के इस जन्मदिन को खास बनाने के लिए पार्टी कार्यकर्ता पूरे प्रदेश भर में लालू प्रसाद यादव का जन्मदिन मना रहे हैं। और आज बिहार की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के महामहिम के जन्मदिन पर उनके जीवन की अब तक के हर उतार-चढ़ाव की कहानी को जानते हैं।

एक छोटे से गांव में जन्मे लालू को देश के उन नेताओं में माना जाता है जिन्हें न सिर्फ प्रशंसक बल्कि विरोधी भी पसंद करते हैं। छात्र संघ से राजनीतिक में कदम रखने वाले लालू प्रसाद यादव के प्रशंसकों की सूची में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा का भी नाम शामिल है। साल 1948 यानी स्वतंत्रता के 1 साल बाद 11 जून को गोपालगंज के फुलवरिया गांव में जन्म हुआ लालू प्रसाद यादव का। गांव के एक किसान के परिवार में जन्म लेने वाले लालू प्रसाद के बारे में उस वक्त कोई यह नहीं जानता होगा कि आगे चलकर यह बच्चा बिहार और देश की सत्ता को बदलने का दम रखने वाला चेहरा बनेगा।

लालू प्रसाद यादव के माता पिता का नाम मराछीया देवी और कुंदन राय था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गोपालगंज से प्राप्त की। लालू बहुत ही छोटे परिवार से आते थे। जिसका व्याख्यान उन्होंने अपनी किताब ‘गोपालगंज से रायसीना’ में की है। उन्होंने अपनी किताब में बताया कि उनके पास ढंग से दो पैंट भी नहीं थी कि वह एक बदल कर दूसरा पहन सकें। खैर गोपालगंज से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उनके बड़े भाई ने उनको अपने साथ पटना लेकर आ गए। पटना के बीएन कॉलेज से इन्होंने लो में स्नातक और राजनीतिक शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। बीएन कॉलेज के समय से ही छात्र राजनीति में काफी सक्रिय थे।

पटना यूनिवर्सिटी से उन्होंने राजनीति की मुख्यधारा में प्रवेश किया। जिसके बाद वे एक-एक कर राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत बनाते गए। साल 1970 में लालू प्रसाद यादव ने छात्र संघ से राजनीति में कदम रखा। राजनीति की दुनिया में लालू प्रसाद को कई उतार-चढ़ाव, उपलब्धियों, विफलताएं देखने को मिली। लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं माना और अपने मजबूत इरादों से अपनी पार्टी की जड़ों को मजबूत बना बनाए रखा।

लालू ने अपनी किताब में अपनी यात्रा के अनेकों किस्से बताए हैं। बिहार पार्षद इलेक्शन में आज एक मामूली औरत (मुन्नी रजक) को अपनी पार्टी से उम्मीदवार उतारने के बाद उसे असाधारण बनाने वाले लालू प्रसाद यादव अपने शुरुआती जीवन को काफी साधारण बताते हैं। उन्होंने अपनी किताब में बताया है कि, उनका जीवन कितना साधारण था। शुरुआती दिनों में उनके आसपास सब कुछ इतना साधारण था कि उसे साधारण कुछ हो ही नहीं सकता उन्होंने बताया, ‘हम लगातार इसी भय में जीते थे कि हमारे सिर से छत कब तूफान में उड़ जाए या बरसात में उससे पानी छूने लगे।’

उनके पिता हमेशा अपने साथ एक लाठी रखा करते थे और उनकी आवाज बेहद दमदार और चिल्लाते थे। अपने पिता के बारे में बताते हुए लालू अक्सर कहते हैं कि वह गरीब जरूर थे, लेकिन साहसी पूरे थे। और उनके जीवन में उनको एक अफसोस जरूर रहता है कि उनके पास उनके पिता की कोई तस्वीर नहीं है। अपनी गरीबी का हाल बयां करते हुए लालू बताते हैं कि, “एक बार जब मैं छोटा था तब मुझे हाथ से चली गई बनियान मिली थी। लेकिन मैं ना तो रोजाना नहा पाता था और ना ही नहीं कपड़े को धो आता था। क्योंकि बदलने के लिए दूसरी बनियान नहीं हुआ करती थी।”

लालू प्रसाद यादव ने 1970 में पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ के महासचिव के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। लालू शुरू से ही जयप्रकाश नारायण, राज नरेंद्र, कपूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा जैसे नेताओं से काफी प्रभावित रहते थे। सत्येंद्र नारायण सिंहा जो बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और बिहार स्टेट जनता पार्टी के अध्यक्ष थे। उनके सहयोग से लालू यादव ने लोकसभा चुनाव लड़ा। लालू प्रसाद ने चुनाव जीता और भारतीय संसद में सबसे युवा सदस्य के रूप में सामने आए। और मात्र 10 साल के अंदर लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति में एक शक्तिशाली शख्सियत बनकर सामने आये।

इसके बाद उन्होंने छपरा और मधेपुरा से लोकसभा चुनाव को जीता और यूपीए सरकार में केंद्रीय रेल मंत्री का पद संभाला। जंगलराज से प्रसिद्ध लालू के कार्यकाल में ही लालू प्रसाद ने घाटे में चल रहे रेलवे को एक फायदेमंद संगठन बना दिया। लालू द्वारा लाया गया रेल का यह परिवर्तन भारत के प्रमुख प्रबंध संस्थानों के साथ-साथ दुनिया भर के बिजनेस स्कूलों में एक शोध का विषय बन गया था।

साल 2005 से लेकर अभी तक लालू प्रसाद यादव की पार्टी सत्ता से बाहर है। लेकिन आज भी उनकी पार्टी और वे सत्ता बदलने का हौसला रखते हैं। चारा घोटाले में जेल और अस्पताल का सफर तय कर रहे लालू प्रसाद यादव के पटना आने की खबर से आज भी बिहार की अन्य पार्टियां सतर्क हो जाती है।

लालू आज अपनी तबीयत को लेकर काफी निरस्त हैं। उनकी किडनी ठीक से काम नहीं कर रही है उन्हें कभी भी किडनी डायलिसिस की जरूरत पड़ सकती है। और ऐसी नौबत ना आए इसके लिए उनके परिवार वाले उनको सिंगापुर के डॉक्टर से दिखाया जाना चाहते हैं। डॉक्टरों ने यह राय दी है कि लालू प्रसाद का किडनी ट्रांसप्लांट करवा दिया जाए। लेकिन सीबीआई के पास उनका पासपोर्ट है। जिसके लिए उन्होंने सीबीआई कोर्ट से उनका पासपोर्ट लौटाने और देश के बाहर जाने की इजाजत मांगी है।

लालू, आज डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हृदयरोग, किडनी में स्टोन, तनाव, प्रोस्टेट का बढ़ना, यूरिक एसिड के बढ़ने आदि जैसे कई बीमारियों से ग्रसित हैं। इसके बावजूद भी विधानसभा की सीढ़ियों पर चढ़ते या पटना एयरपोर्ट से कार तक पैदल आते दिखाई देते हैं। उनका यह कदम इसलिए नहीं कि वह स्वस्थ हैं, बल्कि उनका यह कदम उनकी पार्टी को और मजबूत बनाता है। लालू बखूबी जानते हैं कि अभी राष्ट्रीय जनता दल को लालू प्रसाद यादव की कितनी जरूरत है। और शायद इसीलिए लालू प्रसाद यादव को राजद सुप्रीमो कहा जाता है।

डोरंडा कोषागार, बांका, चाईबासा, दुमका, सहित कई मामलों में लालू को कोर्ट जाना पड़ता है। लेकिन कोर्ट के बाहर आरजेडी कार्यकर्ताओं की भीड़ उनको हौसला देती है कि उन्हें फिर से आरजेडी को सत्ता में लाना है। चारा घोटाला के अलावा लालू के ऊपर आय से अधिक संपत्ति, पार्टी के तरफ से टिकट देने के बदले जमीन लिखवाने का आरोप, रेल मंत्री रहते हुए नौकरियों के बदले जमीन लेने देने का आरोप सहित कई तरह के मामले उनके ऊपर चल रहे हैं। लेकिन उनके समर्थकों में कभी कमी नहीं आई है। हाल ही में लालू प्रसाद यादव के कई ठिकानों पर सीबीआई की रेड पड़ी। जिसमें आरजेडी कार्यकर्ताओं का आक्रोश देखने को रहा।

पार्टी के कई लोग चाहते हैं कि लालू प्रसाद अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद को तेजस्वी को सौंप दें। लेकिन लालू अपने परिवार के अंदर के अंतर्कलह को बखूबी समझते हैं। इसीलिए वे समय-समय पर अपने कार्यकर्ताओं के बीच आते हैं और उनको दिखाते हैं कि बरगद का पेड़ चाहे कितना भी झुक जाए वे अपने नीचे खड़े लोगों को छांव ही देता है।

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