डॉ. संतोष भारती दिल्ली यूनिवर्सिटी में एसिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं। इसके अलावा उनकी पहचान एक लेखक, एक संवेदनशील कवियत्री के रूप में भी है, जिनके लेख और फीचर दुनिया भर के अंग्रेजी, हिन्दी जर्नलस में प्रकाशित होती रहती हैं। वो समाज सेवा से भी जुड़ी हैं। लैंगिक समानता पर भी वो बहुत काम कर रही हैं। इस साल इन्हें आधी आबादी वुमन अचीवर्स अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया। आइये चलते हैं और जानते हैं, इनसे हुई बातचीत के बारे में।
सवाल – पिछले डेढ़ साल में दुनिया थोड़ी बदली है, कोविड के बाद से आपका अनुभव क्या रहा है ?
जवाब – देखा जाए तो कोविड का जो टाइम था वो सिर्फ मेरे लिए नहीं बल्कि तमाम लोगों के लिए काफी कुछ सीखने का भी दौर था और जहां तक मेरी अपनी पर्सनल सीख की बात है तो मैंने खुद के बारे में काफी कुछ जानने की कोशिश की खास कर लिखित रूप में! लिखित रूप में से मेरा मतलब है कि मैंने अपने जितने भी जज़्बात थे, जितनी भी अपनी सोच थी वो सारी चीजें मैंने लिखनी शुरू की। पहले जो मैं लिखती थी वो उतने गंभीर तरीके से नहीं लिखती थी लेकिन, कोविड के बाद से और गंभीर तरीके से लिखने लगी हूँ।
सवाल – क्या इस कोविड ने आपको इतना समय दिया कि आप अपने लेखन का काम अच्छे से कर सकीं ?
जवाब – जी, बिल्कुल और मैं इस दौरान लोगों से भी काफी जुड़ी, क्योंकि जब लोग मेरे आर्टिकल को पढ़कर फीडबैक देते हैं तो मैंने ये महसूस किया कि कहीं न कहीं उनके जीवन से भी काफी जुड़ी हुई चीजें मैं व्यक्त कर रही हूं। मेरे लिए ये दौर ऐसा भी था जहां मैंने खुद पे ज्यादा काम किया। फैमिली को, दोस्तों को वक्त दिया और काफी लोगों से भी मैं जुड़ी तो ये मेरे लिए बहुत ही फ्रूटफुल समय रहा।
सवाल – आपकी लिखने की शुरुआत कैसे हुई ?
जवाब – दरअसल बचपन में हम सब डायरी लिखा करते थे तो शुरुआत शायद वहीं से हुई क्योंकि मैं बोर्डिंग स्कूल में थी। ओक ग्रोव स्कूल झरीपानी, मसूरी वहां से पढ़ना-लिखना एक सिलसिला बनता चला गया। इस सिलसिले को निखारने में मेरी मदर डॉ. ज्योति का बहुत बड़ा रोल रहा, क्योंकि वो खुद भी पीएचडी पॉलिटिकल साइंस हैं तो उन्होंने मुझे काफी प्रोत्साहित किया। बाद में मैंने रिसर्च आर्टिकल लिखना शुरू किया तो वो जर्नल्स पब्लिश होने लगे तो धीरे-धीरे आत्मविश्वास बढ़ता चला गया।
सवाल – आपकी पैदाइश कहां हुई, शुरूआती दौर के बारे में कुछ बताएं ?
जवाब – मेरी जो पैदाइश हुई है वो बोकारो, झारखंड में हुई, जब ये बिहार का एक हिस्सा था। मेरे फादर बोकारो स्टील सिटी प्लांट में थे और मम्मी उस वक्त टीचर ट्रेनिंग कर रहीं थीं। हालांकि, अब वो पॉलिटिक्स में हैं। जब मेरा जन्म हुआ तब कुछ समय तक तो मैं बोकारो में ही सेन्ट्रल स्कूल में पढ़ी फिर वहां से ही पटना आई। फिर डॉन वॉस्को स्कूल में पढ़ाई की, फिर वहां से हमें यानि मुझे और मेरे भाई दोनों को ही मसूरी शिफ्ट कर दिया गया, जहां दोनों ने बारहवीं तक की पढ़ाई की। उसके बाद मैंने ग्रेजुएशन दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज से इंग्लिश ऑनर्स में किया। वहां से फिर जेएनयू चली गई और जेएनयू से फिर एमए ,एमफिल और पीएचडी भी की, इसके साथ हीं में मुझे स्कॉलरशिप भी मिली थी।
सवाल – आपकी मम्मी भी स्कॉलर रहीं हैं और अब पॉलिटिक्स में हैं तो क्या इसी कारण ये समाजसेवा और पॉलिटिक्स आपमें भी उतर आया ?
जवाब – मम्मी को देखते हुए मैंने बहुत कुछ सीखा। ये जो समाजसेवा का जो सिलसिला था वो वहीं से धीरे-धीरे शुरू हुआ। फिर बच्चों के साथ मैं जुड़ी उनके साथ मेरा थोड़ा लगाव और बढ़ा और इससे मैं चीजों को और अच्छे से जान सकी। आज मैं ‘त्रिवेणी फाउंडेशन’ के साथ जुड़ी हूं और मैं उनके साथ काम करतीं हूं। ‘स्वयं’ के साथ भी काम करतीं हूं। ये एक दिन में नहीं आती है। इसके लिए आपकी अपनी खुद की रूचि और खुद का जुड़ाव होना बहुत जरूरी है। यही सारा चीज मैं कहूंगी कि मदर से मिला।
सवाल – इसके अलावा आप कॉलेज में पढ़ाती भी हैं, आप अगली पीढ़ी को तैयार कर रही हैं। अपने बच्चों के साथ आप कैसी टीचर है ?
जवाब – बच्चों के साथ आपको बच्चा बनना ही पड़ेगा और ये छोटे बच्चे नहीं हैं जिन्हें आप डांट सकते हैं और चुपचाप बिठा सकते हैं। ये कॉलेज गोइंग बच्चे हैं जिनके साथ आपको एक बहुत ही फ्रेंडली अप्रोच के साथ डिसिप्लिन रखना बहुत जरूरी हो जाता है। उनके साथ एक ऐसा रिश्ता बनाना होगा जिससे बच्चे आप पर ट्रस्ट कर सकें और वो ट्रस्ट एक दिन में नहीं आता है। आपके व्यवहार को बदलना पड़ता है, आपकी सोच को बदलना पड़ता है, आपकी टीचिंग मैथेडोलॉजी को उनके हिसाब से एडॉप्ट करना पड़ता है।
सवाल- आप हमारे रीडर्स को क्या संदेश देना चाहेंगी ?
जवाब – मैं ये कहना चाहूँगी कि जेंडर इश्यू बहुत ही सेंसिटिव है वो एक दिन में नहीं समझाई जा सकती है। आज भी हमारे यहां विमेंस स्टडी सेंटर्स हैं वो बहुत ही कम हैं। इसको और डेवलप करने की जरूरत है इसके लिए यूजीसी काफी काम कर रहीं है। ये इसी लिए इंट्रोड्यूज की गई है कि जागरूकता फैलाई जाये। बच्चों को बताने के लिए कि जेंडर इक्यूलिटी भी होती है और हम सबको मिलकर काम करना है। ऐसा नहीं है की औरतों को हीं एक अलग नजरिए से देखा जाए या मर्दों को अलग नजरिए से देखा जाए, ये हम सबको मिलकर काम करने की जरूरत है।