14 जुलाई से शिव भक्तों का महीना शुरू हो चूका है। इसी के बीच सावन के पहले सोमवार से मधुश्रावणी व्रत शुरू होने जा रहा है। जिसे लेकर नवविवाहिताओं में उत्साह व उमंग का माहौल बना हुआ है। इस साल यह पूजा 18 जुलाई यानि सोमवार के दिन से शुरू हो रहा है।
नवविवाहिताओं द्वारा करने वाले इस व्रत में गौरी-शंकर की पूजा तो की ही जाती हो। लेकिन साथ ही विषहरी व नागिन की भी पूजा की जाती है। अपने सुहाग की रक्षा के लिए नवविवाहिता इस व्रत को करती है। इस व्रत के दौरान नवविवाहिता अपने ससुराल के दिये गये कपड़े-गहने ही पहन व्रत करती हैं। इसके साथ ही वे ससुराल के दिए भोजन ही करती है। इसलिए पूजा शुरू होने के एक दिन पूर्व नवविवाहिता के ससुराल से सारी सामग्री भेज दी जाती है।
अक्सर नवविवाहिता शादी के पहले साल मायके में ही रहती है। इस व्रत के पहले और अंतिम दिन की पूजा बड़े विस्तार से होती है। जमीन पर सुंदर तरीके से अल्पना बना कर ढेर सारे फूल-पत्तों से पूजा की जाती है। पूजा के बाद कथा सुनाने वाली महिला कथा सुनाती है। जिसमे शंकर-पार्वती के चरित्र के माध्यम से पति-पत्नी के बीच होने वाली बाते जैसे नोक-झोंक, रूठना मनाना, प्यार, मनुहार जैसे कई चरित्रों के जन्म, अभिशाप, अंत इत्यादि की कथा सुनाई जाती है। जिससे नव दंपती इन परिस्थितियों में धैर्य रखकर सुखमय जीवन बिता सके।
ऐसी मान्यता है कि यह सब दांपत्य जीवन के स्वाभाविक लक्षण हैं। पूजा के अंत में नव विवाहिता सभी सुहागिन को अपने हाथों से खीर का प्रसाद एवं पिसी हुई मेंहदी बांटती है। इस पूरे व्रत के दौरान नवविवाहिता सज-धज कर फूल लोढ़ने के लिए बाग-बगीचे में सखियों संग निकलती हैं। वहीं इस पर्व में नवविवाहिताएं बासी फूल से मां गौरी और नाग की पूजा अर्चना करती है। बता दें कि नवविवाहिताएं यह 15 दिनों का पर्व अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए करती हैं। निर्जला व्रत के साथ नवविवाहिताएं इस पर्व को आरंभ करती है और 15 दिनों तक निष्ठापूर्वक रहकर अरवा भोजन खाकर पर्व मनाती हैं।