1905 में 7 अगस्त को यानी की आज के ही दिन स्वदेशी आंदोलन की शुरुवात की गई थी। अगर याद ना हो तो चलिए आपको बता दें की आज़ादी की लड़ाई में स्वदेशी आंदोलन का एक बड़ा योगदान रहा है। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य अपने देश की वस्तुओं को अपनाना और दूसरे देश की वस्तुओं का बहिष्कार करना था और इस आंदोलन के करीबन 110 साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में इस दिन को national handloom day के नाम से दर्जा दे दिया। 2015 के बाद से इस दिन को प्रतिवर्ष देश के हाथ से बने चीजों की महत्त्व, देश के कला-कृतियों को बढ़ावा देना और साथ ही सामाजिक एवं आर्थिक विकाश के खातिर मनाया जाने लगा।
अब आप सोचेंगे की यह हैंडलूम डे होता क्या है? हैंडलूम का अर्थ क्या है? तो चलिए आपको थोड़े विस्तार में बताते हैं-
वाराणसी अपनी बनारसी सिल्क साड़ियों और जरी के काम के लिए काफ़ी मशहूर है। वहीं तमिलनाडु की प्रसिद्ध कांचीवरम साड़ी हो, कश्मीर की पश्मीना शॉल हो, लखनऊ की चिकनकारी कुर्तीया हों या असम की मुगा मेखला सदोर यानी की सुनहरा रेशम, सभी अपने हाथ से बुने कामों के लिए देश और विदेश में जाने जाते हैं। आपको बता दें कि हमारा देश बुनाई के साथ-साथ कला और विरासत में मिली संस्कृति के लिए हमेशा से प्रचलित रहा है। भारत एक ऐसी भूमि है जहाँ पारंपरिक कला और शिल्प के माध्यम से अपने संस्कृति को दर्शाने के लिए जाना जाता रहा है। यह सभी हाथ से बुने कपड़े और साथ ही हथ-शिल्प और कला-कृतियाँ मिल कर हैंडलूम के अर्थ को बयां करती है।
अब अगर ख़ास तौर से बात करें यहाँ की कला-कृतियों की तो;
आप देश में हाथ से बुने कुछ ख़ास कपड़ो को तो जान ही गए है, तो अब आपको देश की हथशिल्प कला से भी रूबरू करवाते है। भारत के कुछ ग्रामीण इलाको की पारंपरिक कला होती है जिसे आदिवासी कला यानी कि tribal arts के नाम से पहचान दी गई थी। वहीं देश के हर राज्य की अपनी एक ख़ास शैली और कला की पहचान है, जिसे लोक कला यानी की folk art के रूप में जाना जाता है। जैसे राजस्थान-गुजरात-बंगाल की मशहूर ऐतिहासिक आकृतियों के लिए तंजौर आर्ट, बिहार के मिथिला से मधुबनी पेंटिंग, ओडिशा की प्रसिद्ध कला पट्टचित्रा पेंटिंग, और सबसे महत्वपूर्वं दिवाली में बनाए जाने वाली रंगोली जो कि देशभर लोक प्रिय है। ऐसी कई सारी शिल्पकला है जो हर राज्य और छोटे से छोटे जिलों से उत्पन्न हुई है और अब देश भर में प्रसिद्ध है।
इसी में बात करें अपने प्रदेश – बिहार के आर्ट फॉर्म कि तो यहाँ विश्वविख्यात मिथिला पेंटिंग यानि की मधुबनी पेंटिंग है, फिर चन्दन-कुमकुम और सिन्दूर से बनाये जाने वाले टिकुली आर्ट, सूखे घास के डंटलो से बनने वाली सिक्की आर्ट, नारी सशक्तिकरण को दर्शाने वाली भागलपुर की मंजुसा आर्ट, बिहार की प्रमुख वस्त्र शिल्प परम्परा- सुजिनी कढ़ाई जो की ज़्यादातार साड़ी-धोती और दुप्पट्टे पर देखने को मिलेती है। ऐसे कई और मशहूर शिल्पकला बिहार में छुपे हुए हैं जो देश की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। इनसे ही हमारे देश ही मान और सम्मान बनती है।
हथकरघा दिवस के तहत सरकार देश के अलग-अलग कला और संस्कृति को बचाए रखने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। पहले मेक इन इंडिया (make in india) द्वारा देशी और विदेशी कंपनियों को भारत में ही अपने वस्तुओं का निर्माण करने पर ज़ोर दिया जाता था और अब कोरोना महामारी के वक़्त से आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू कर देश के हर एक व्यक्ति को किसी का सहारा ना लेना पड़े उसके लिए एक छोटी-सी योजना है, जिसके अंतर्गत छोटे उद्योगों, श्रमिक, मजदूर-किसानों के रोजगार पर अधिक ध्यान देने की पहल है।
हिंदुस्तान एक ऐसा देश जहाँ पहनावे के रूप में हम पहनते है-जज़्बात, गर्व, प्यार, प्रतिष्ठा, विश्वास, इज़्ज़त, निष्ठा और अपनी पहचान। इसी को धयान में रखते हुए भारत देश के वो कारीगर /बुनकर जिनकी पहचान कहीं न कहीं आज धूमिल हो गई , हम सब को मिलकर उनके इस हुनर को बढ़ावा देकर रोजगार के साथ साथ पुरे दुनिया में अपनी पुरानी ख्याति वापिस हासिल कर सकते हैं। एक ऐसा भी वक़्त था जब पुरे दुनिया में भारतीय बुनकर और उनकी कला का बोलबाला था। इस दिन हैंडलूम दिन के रूप में मानाने का फैसला इसी खोई हुई गरिमा को वापस लाने के उद्देश से हैं।