श्रीकृष्ण अपनी राधा के बिना अधूरे हैं। जब भी भगवान कृष्ण की बात होती है तो राधा का जरूर नाम लिया जाता है। कहते हैं कृष्ण की कृपा चाहते हो तो राधा जी की भक्ति जरूर करना चाहिए। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद राधा अष्टमी के रूप में श्रीराधाजी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाजी का जन्म हुआ था। पंचांग के अनुसार इस बार अष्टमी तिथि 3 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट पर आरंभ हुई। इस तिथि का समापन 4 सितंबर,रविवार को सुबह 10 बजकर 40 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार राधा अष्टमी का पर्व 4 सितंबर को मनाया जाएगा। वैसे तो देशभर में इस त्योहार को मनाया जाता है लेकिन वृंदावन, मथुरा और बरसाना में इसका खास महत्व है।
राधाष्टमी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार जब माता राधा स्वर्ग लोक से कहीं बाहर गई थीं, तभी भगवान श्रीकृष्ण विरजा नाम की सखी के साथ विहार कर रहे थे। जब राधा ने यह सब देखा तो नाराज हो गईं और विरजा का अपमान कर दिया। आहत विरजा नदी बनकर बहने लगी। राधा के व्यवहार पर श्री कृष्ण के मित्र सुदामा को गुस्सा आ गया और वह राधा से नाराज हो गए। सुदामा के इस तरह के व्यवहार को देखकर राधा नाराज हो गईं और उन्होंने सुदामा को दानव रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। इसके बाद सुदामा ने भी राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया। राधा के श्राप की वजह से सुदामा शंखचूड़ नामक दानव बने, बाद में इसका वध भगवान शिव ने किया। वहीं सुदामा के दिए गए श्राप की वजह से राधा जी मनुष्य के रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर आईं और उन्हें भगवान श्री कृष्ण का वियोग सहना पड़ा।
पूजा विधि
इस दिन व्रत रखकर राधाजी के विग्रह को पंचामृत से स्न्नान करवाकर उनको सुन्दर वस्त्र और आभूषण धारण करवाकर उनकी आरती करें। श्री राधामन्त्र ‘ॐ राधायै स्वाहा ‘ का जाप करना चाहिए। राधा नाम के जाप से श्री कृष्ण की कृपा शीघ्र प्राप्त हो जाती है। ध्यान रहे कि पूजा का समय ठीक मध्याह्न का होना चाहिए। इस दिन व्रत रखने वालों को पूरे दिन फलाहार का सेवन नहीं करना चाहिए और अगले दिन सुबह राधा रानी की पूजा अर्चना और आरती के बाद ही भोजन ग्रहण करें। दूसरे दिन श्रद्धानुसार सुहागिन स्त्रियों तथा ब्राह्मणों को भोजन कराएं व उन्हें दक्षिणा दें।