students_after_covid
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जैसे-जैसे हमारे जीवन में अनुभव का विस्तार होता है, वैसे वैसे हमारे सामने अलग अलग प्रकार कि चुनौतियाँ भी सामने आते जाती है। पिछले लगभग डेढ़ साल में कोरोना के चलते लगाए गए लॉकडाउन ने बच्चों के लिए अनेक प्रकार की चुनौतियां पैदा कर दी थी। कोरोना महामारी के दौरान, लॉकडाउन से सबसे ज्यादा बच्चों को ही दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। इस बीच स्कूल, पार्क, घूमने फिरने की जगह आदि के बंद हो जाने से सबसे ज्यादा बच्चों के सामाजिक एवं भावनात्मक विकास पर असर पड़ा था।

कोरोना महामारी के दौरान, घर से स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों के लिए स्वास्थ्य की हानि को हमारे आगे की पीढ़ी के लिए सबसे बड़े नुकसान के रूप में दिखाया गया। लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद से किए गए कुछ अनुसन्धान से इस बात की जानकारी मिली है कि बुरे दौर का अनुभव सभी बच्चों पर अलग-अलग प्रकार से हुआ है। महामारी के इतने समय बाद भी कई ऐसे बच्चे हैं जो इससे पूर्ण रूप से उभर नहीं पाएं है। ऐसे में अब जब स्कूल, कोचिंग सेंटर, पार्क आदि खुल गए हैं ,तो बच्चो को पुराने दिनों कि तरह वापस से लोगों से घुलने-मिलने और सामान्य व्यवहार करने में अटपटा महसूस होने लगा है।

बहुत सारे बच्चों और युवाओं का जीवन भारी कठिनाई के बीच बीतता है और कई के लिए सीमित अवसर होते हैं। लॉकडाउन से पहले भी यही स्थिति थी, लेकिन अब लॉकडाउन के बाद समस्या और बढ़ गई है। ऐसे में बच्चो को इस दौर से उभरने में मदद के तौर पर माता-पिता को ही कुछ एहम कदम उठाने होंगे। माता-पिता को फिलहाल ज़रूरत है कि वह अपने बच्चो के कल्याण हेतु कुछ उपाय अपनाए और अपने बच्चों पर आज़माएं । इसमें कामकाजी माता-पिता को थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी।

यह याद रखना बेहद महत्वपूर्ण है कि खुशहाली, बेहतर अनुभव और विकास, माता-पिता एवं बच्चे दोनों की प्रक्रिया है। इसलिए कौशल उम्र और परिस्थितियों के साथ भिन्न होते हैं। माता पिता को आवश्यक है कि अपनी भावनाओ एवं दुसरों कि भावनाओ को बच्चे अच्छे से समझे और जीवन कि समस्याओं का डटकर सामना करें। सकारात्मक संबंध बनाना और सेहतमंद रहना, व्यायाम करना, प्रसन्न रहना, खेल कूद करना आदि व्यापक अवधारणा है जो बच्चों के बीच अंतर को पहचानते हुए व्यक्ति और उनके संदर्भ को शामिल करता है।