major dhayanchand
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शारीरिक तौर से फिट रहना आज के ज़माने में बेहद आवश्यक हो चुका है। और शारीरिक रूप से फिट रहने के लिए लोग या तो जिम जाते है और नहीं तो तरह तरह के खेल खेलते है। और जब बात करे विशेष रूप से खेल कूद कि तो दुनिया भर में खेल का बड़ा महत्त्व है।

राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर खेल कूद, स्पोर्ट्स को उच्च स्थान दिया गया है। वहीं जब बात अपने देश भारत कि तो, इसमें कोई दोराय नहीं होगा की हमने हमेशा खेल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बखूबी प्रदर्शन किया है। हमारे देश ने बरसो से स्पोर्ट्स को अलग अलग और ख़ास दर्जा दिया है। और लोगो को खेल कूद के प्रति जागरूक करने में कभी पीछे नहीं रहा।

यह सभी जानते हैं कि हमारे देश भारत का राष्ट्रीय खेल “हॉकी” है। मगर यह खेल क्यों राष्ट्रीय खेल बना है शायद ही कोई जानता होगा। एक वक्त था जब भारत ने हॉकी खेल में कई पदक हासिल किए। इस सफलता में हॉकी के महान प्लेयर मेजर ध्यानचंद का मुख्य भूमिका रहा है। मेजर ध्यानचंद ने खेल जगत की दुनिया में भारत को एक ऐतिहासिक स्थान प्रदान करवाया है। भारत के गौरवान्वित करने वाले हॉकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त को हुआ था। आज हमारा देश उनके जन्मदिन 29 अगस्त को ही “राष्ट्रीय खेल दिवस” के रूप में हर साल मानते आ रहा है।

आज “राष्ट्रीय खेल दिवस” के अवसर पर आपको ध्यानचंद के जीवन एवं इस दिवस के इतिहास से रुबरु करवाते हैं।

~ मेजर ध्यानचंद उर्फ़ हॉकी का जादूगर~

उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद शहर के पैदायशी, ध्यानचंद सिंह का जन्म 29 अगस्त 1905 में हुआ था। शुरुवाती दौर में वह इलाहाबाद से झांसी जा पहुंचे चूंकि उनके पिता का वक्त वक्त पर स्थानान्तर हुआ करता था। मगर बार बार पिता के स्थानांतरण के कारण वह पढ़ाई में कभी मन ना लगा पाए। और आगे चल कर उन्हे खेल खुद में ज्यादा रुचि होने लगी। खेल खुद में भी ख़ास कर हॉकी खेलना उन्हे ज्याद पसंद आने लगा। बचपन से उन्हें लोग “ध्यान सिंह” के नाम से बुलाया करते थे। हॉकी का जुनून उनके सर पर इतना शुमार था कि कभी वह पेड़ की दाल से हॉकी स्टिक बना लिया करते तो कभी पुराने कपड़ो से गेंद। मगर छोटी जगह रहते हुए भी उनके हॉकी खेलना की चाह कभी खत्म नहीं हुई।

केवल 16 साल के उम्र में उन्हे हॉकी खेलने का अवसर मिल गया था। वह दौर था सं 1922 का जब उन्हें यह मौका प्राप्त हुआ। साधारण शिक्षा पूरी कर वह दिल्ली के प्रथम ‘भ्राह्मण रेजिमेंट’ सेना में भर्ती हो गए थे। एक दिन वह अपने पिता संग हॉकी का खेल देखने सेना के एक मैदान में पहुंचे, खेल में जिस पक्ष का वह समर्थन कर रहे थे वह हारने की कगार पर थी। तभी वह चिल्लाकर अपने पिता से कहने लगे की अगर खेल में वह भी होते तो आज दृश्य कुछ और ही होता। तभी वहां स्थित एक सेना अधिकारी ने उनकी बात सुनी और खेल के मैदान में जाने को कहा। खेल में घुसते ही उन्होंने लगातार 4 गोल मारे, और फिर उनके प्रदर्शन एवं मनोबल को देख हॉकी खिलाड़ियों की सेना में भर्ती कर दिया गया। और फिर यहाँ से उनके भारतीय सेना में काम करने के साथ ही साथ हॉकी करियर की भी शुरुवात हुई।

सं 1948 तक मेजर ध्यानचंद ने लगातार कई सारे इंटरनेशनल हॉकी टूर्नामेंट में भाग लिया और देश को जिताया भी है। साल 1928, 1932 एवं 1936 में उन्होंने भारत को ओलिंपिक स्वर्ण पदक भी दिलवाई था। इस बिच उन्होंने राष्ट्रिय स्तर पुरष्कार भी प्राप्त किए जैसे- भारत के दूसरे सबसे बड़े सम्मान पद्मभूषण। इसके बाद 42 साल की उम्र में ध्यानचंद ने रिटायरमेंट ले ली। लेकिन रिटायरमेंट लेने के बावजूद आर्मी में होने वाली हॉकी मैच में खेलते रहे और साल 1956 तक हॉकी स्टिक को अपने हाथों में थामे रखा था। 1979 में उन्हें लिवर कैंसर हुआ जिसके तहत दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल (AIIMS हॉस्पिटल) में उन्हें भर्ती किया गया था। मगर ज़िन्दगी को कुछ और ही मंजूर था, 3 दिसंबर 1979 को उनका देहांत हो गया।

मरने के बाद से ही उनके जन्मदिन को भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन को कोई साधारण दिन कि तरह नहीं बल्कि एक पर्व की तरह मनाया जाता है। यह सिर्फ मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन के तौर पर नहीं बल्कि देश भर में खेलो और खेलों की भावना के प्रति जश्न के रूप में मनाया जाता है। हर साल 29 अगस्त के दिन देश में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाडियों को अर्जुन पुरष्कार एवं उनके कोच को द्रोणाचार्य पुरष्कार प्रदान किए जाते है।