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भागलपुर ऐसे दुनिया भर में अपने विशेष प्रकार के सिल्क के लिए मशहूर है। लेकिन अब भौगोलिक मानचित्र पर भागलपुर का नाम फिर से अंकित हुआ है। और यह काम गरुड़ों द्वारा हुआ है। जहां गरुड़ों के संख्या में लगातार वृद्धि दर्ज की जारी है। दुनियाभर में करीब 1600 गरुड़ है। इनमें से 600 के करीब सिर्फ भागलपुर में मौजूद हैं।

भागलपुर के नवगछिया अनुमंडल के कदवा क्षेत्र को गरुड़ों ने अपना प्रजनन केंद्र बना लिया है। वन विभाग के अनुसार कदवा क्षेत्र दुनिया का तीसरा और भारत का दूसरा सबसे बड़ा प्रजनन स्थल हो गया है। ठंड के मौसम में बड़े-बड़े बरगद व पीपल के पेड़ों पर अपना डेरा जमाये दर्जनों गरुड़ मटरगश्ती करते दिख रहे हैं।

यहां के लोग गरुड़ को भगवान स्वरूप मानते हैं। इन गरुड़ों की खासियत यह है कि यह पेड़ पौधों में कीड़े नहीं लगने देते ये कीड़े मकोड़े फसल बर्बाद करने वाले चूहों को भी खा जाते हैं। सरकार गरुड़ों के लिए सालाना 40 लाख रुपये खर्च करती है। भागलपुर के सुंदरवन में गरुड़ पुनर्वास केंद्र बनाया गया है। यह दुनिया का एक मात्र गरुड़ पुनर्वास केंद्र है। यहां बीमार गरुड़ों का इलाज भी किया जाता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां का वातावरण गरुड़ों के लिए अनुकूल है। यहां के लोग इनकी पूजा करते हैं। देश के कई हिस्सों से लोग गरुड़ों के इस झुंड को देखने कदवा पहुंचते हैं।

कंबोडिया, गरुड़ों के लिए जाना जाता था। और बिहार का भागलपुर गरुड़ के लिए जाना जा रहा है। वहीं भागलपुर वन एवं पर्यावरण विभाग के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ संजीत ने बताया कि इस गरुड़ का कम्बोडिया ,असम के अलावा कदवा क्षेत्र में प्रजनन केंद्र है। स्थानीय लोग गरुड़ की रक्षा करते हैं और लोग इन्हें हर वर्ष सम्मानित करते हैं। असम में सबसे ज्यादा गरुड़ पाए जाते थे लेकिन भागलपुर ने असम को भी मात दे दी है 2006 के बाद की बात करें तो 16 वर्षो के अंदर गरुड़ों की संख्या यहां 9 से 10 गुना तक बढ़ी है।

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