amrendra pratap singh
amrendra pratap singh

शुक्रवार को कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप ने इस हामी भरते हुए इस बात कि पुष्टि की है कि पिछले कुछ महीनो से राज्य में खाद की कमी हो गई है। इसके साथ ही उन्होंने खाद की किल्लत का कारण भी व्यक्त किया है। उनके कहे अनुसार, कोरोना काल में खाद की शिपिंग को बंद करने से ही बिहार में खाद उपजाऊ में भी रुकावट होने लगी थी।

जानकारी के अनुसार, भारत 30 प्रतिसत खाद आयात में काम करता है। ऐसे में खाद की शिपिंग न होने से एक बड़ा मसला खड़ा हो रहा है। अब जब जहाज खाद लेकर भारत नहीं पहुँच पा रहा। तो ऐसे में जिन प्रखंडों में खाद की ज़रुरते फिलहाल नहीं है वहां के स्टॉक को अन्य जिलों-प्रखंडों में भेजने कि व्यवस्ता की जा रही है। इसी बिच राज्य के कुछ जिला पदाधिकारियों का कहना है कि उनके जिलों के किसानों को खाद लेने के लिए कई घंटो कड़कड़ाती धुप में खड़े रहना पड़ता है। खाद कि कमी होने के बावजूद इसकी मांग बरकरार है। इतने मेहनत के बावजूद जरूरत की दो बोरी यूरिया मिलने की गारंटी नहीं होती। इसके लिए किसानों की भीड़ इतनी होती है कि तीन-चार घंटो में ही खत्म भी हो जाती है।

इसी में राजधानी पटना कि बात करें तो जिले के मसौढ़ी अनुमंडल के कोरियावां गांव में खाद की बिक्री पूरी तरह से ठप है, दुकाने खुल रही मगर खाद नहीं मिल रही है। कुछ किशाने कहते है कि जहां उन्हें 50 बोरे की जरूरत होती है, वहां उन्हें मुश्किल से दो बोरा खाद ही दी जाती है। कुछ जिलों में जो थोड़ी बहुत खाद मिल रही वह भी कालाबाज़ारी से बिक रहे हैं। ऐसे में खाद कि किल्लत व दुकानदारों की कालाबाज़ारी से परेशान होकर कई सारे किसान एफआईआर भी दर्ज कर रहे मगर कोई फ़ायदा नहीं हो रहा।

गौरतलब है कि राज्य सरकार ने खाद की मांग केंद्र सरकार से की थी। जिसमे 10 लाख टन यूरिया, साढ़े तीन लाख टन डीएपी, दो लाख टन एनपीके और एक लाख टन एमओपी की मांग थी। मगर उस अनुसार आपूर्ति नहीं हो पा रही है। पिछले महीने कि बात करें तो अगस्त में करीबन 2.80 लाख टन की जरूरत थी, मगर आपूर्ति मात्र एक लाख 74 हजार 641 की हो पाई थी। वहीं अब सितम्बर के महीने में 2.40 लाख टन खाद की जरूरत है, जिसमे से अब तक सिर्फ 46 हजार 573 टन यूरिया ही मिल सका है।