लोक आस्था का महापर्व छठ का समापन हो चुका है, इसके साथ ही बिहार (Bihar) के मिथिलांचल (Mithilanchal) में सामा चकेवा (Sama Chakeva) पर्व शुरू हो गया है। इस पर्व को भाई-बहन के प्यार के तौर पर मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) तक चलेगा। इस पर्व में सामा बहन के रूप में जबकि चकेवा भाई के रूप में है। इसको लेकर मूर्तिकारों के द्वारा सामा-चकेवा के साथ सतभैया, चुगला जैसे जुड़ी तमाम मूर्तियों का निर्माण कराया जा रहा है।
समस्तीपुर समेत मिथिलांचल के विभिन्न जिलों में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान रोज में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं एक जगह इकट्ठा होकर। सामा चकेवा से जुड़ी लोकगीत गाती है और आपस में मूर्तियों का आदान प्रदान करती है जिसे फेरा कहा जाता है। आठ दिनों तक यह उत्सव मनाया जाता है और नौवें दिन बहनें अपने भाइयों को धान की नयी फसल का चूड़ा एवं दही खिला कर सामा-चकेवा की मूर्तियों को तालाब में विसर्जित कर देती हैं।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, यह कृष्ण की एक बेटी श्यामा की कहानी है, जिस पर गलत काम करने का झूठा आरोप लगाया गया था। उसके पिता ने उसे एक पक्षी में बदलकर उसे दंडित किया, लेकिन उसके भाई चकेवा के प्यार और बलिदान ने अंततः उसे मानव रूप प्राप्त करने की अनुमति दी।