द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) की कई ऐसी कहानियाँ हैं जो आज भी लोगों के जुबान पर है उन कहानियों में से एक स्कूल जाने वाली बच्ची की कहानी भी है जिसने यहूदियों के अत्याचार के कारण अपने प्राण त्याग दिए। उसने 13 साल की उम्र से एक डायरी लिखनी शुरू की थी जो आज दुनिया की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताब बन गई है। एनी फ्रैंक (Anne Frank) की लिखी डायरी “डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल” (Diary of a Young Girl) को आज प्रकाशित हुए पूरे 75 साल हो गए हैं। इस खास मौके पर गूगल (Google) ने डूडल (Doodle) बनाकर एनी फ्रैंक की डायरी के कुछ हिस्सों को खूबसूरत स्लाइड शो में पेश किया है। इस डूडल को कला निर्देशक ठोका मायर (Thoka Maer) ने बनाया है।
जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में 12 जून, 1929 को जन्मी ऐनी फ्रैंक 10 साल की थीं, जब जर्मनी ने नीदरलैंड पर आक्रमण किया था। बढ़ते भेदभाव और हिंसा से बचने के लिए ऐनी फ्रैंक का परिवार जल्द ही एम्स्टर्डम, नीदरलैंड चला गया। 1942 में, फ्रैंक का परिवार उसके पिता के कार्यालय में एक गुप्त एनेक्स में छिप गया, जहाँ उन्होंने अपने दैनिक जीवन के बारे में लिखना शुरू किया। एनी के पिता ओटो फ्रैंक ने उनके 13वें जन्मदिन पर अपनी बेटी को एक डायरी गिफ्ट की थी जिसमें वो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजियों द्वारा यहूदियों पर किए अत्याचारों का आंखों-देखा हाल लिखती थीं।
1944 में, नाजियों द्वारा गुप्त एनेक्स में रहने वालों की खोज की गई और उन्हें हिरासत में भेज दिया गया। वहां से, उन्हें पोलैंड के ऑशविट्ज़ एकाग्रता शिविर में भेज दिया गया। परिवार अलग हो गया था। ऐनी और उसकी बहन मार्गोट फ्रैंक को जर्मनी के बर्गन-बेल्सन शिविर में ले जाया गया। माना जा रहा है कि दोनों की मौत टाइफाइड बुखार से हुई है।
इस युद्ध में केवल एनी के पिता ओटो फ्रैंक बच गए। उनके एक कर्मचारी मिएप गिज़ ने ऐनी की डायरी को पुनः प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की थी। उसने उन्हें ओटो फ्रैंक को सौंप दिया, जिन्होंने इसे 1947 में डच में प्रकाशित करवाया। इसका मूल डच से अनुवाद किया गया और पहली बार 1952 में द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल के रूप में अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था। तब से अब तक इसका 70 से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। समय के साथ, यह डायरी दुनिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में से एक बन गई।