उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने प्रदेश में 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने के संदर्भ में जारी सभी अधिसूचनाएं रद्द कर दी हैं। इस याची के अधिवक्ता राकेश गुप्ता ने आदेश की जानकारी देते हुए बताया कि कोर्ट ने इन सभी अधिसूचनाओं के अमल पर पहले ही रोक लगा रखी थी। अखिलेश यादव और योगी सरकार ने अपने कार्यकाल में दो-दो अधिसूचनाएं जारी कर प्रदेश में 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने की बात कही थी।
साल 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार ने भी डेढ़ दर्जन ओबीसी जातियों को एससी की सूची में शामिल करने का फैसला किया था। हाईकोर्ट ने उस पर भी रोक लगा दी थी। ओबीसी की जिन जातियों को एससी में शामिल करने की अधिसूचनाएं जारी की गई थीं, उनमें मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मछुआ शामिल हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में सरकारों के कामकाज को लेकर भी कठोर टिप्पणी भी की है। कहा कि संवैधानिक अधिकार न होने के बावजूद यूपी में राजनीतिक लाभ के लिए बार-बार अनुसूचित जातियों की सूची में फेरबदल किया जा रहा था। संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित वर्ग की सूची में बदलाव का अधिकार केवल देश की संसद को है। केंद्र और राज्य सरकारों को इस सूची में बदलाव का कोई अधिकार संविधान ने नहीं दिया है।
जनहित याचिकाओं की सुनवाई का एक खास बात यह भी कि राज्य सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा कि उसके पास यह अधिसूचना जारी रखने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। सरकार की ओर से प्रस्तुत इस दलील के आधार पर ही कोर्ट ने याचिकाएं मंज़ूर कर लीं। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल एवं न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने गोरखपुर के डॉ भीमराव अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति की दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिया है।